क्या है वन नेशन-वन इलेक्शन ? क्यों है इस पर बवाल

वन नेशन वन इलेक्शन’ की चर्चा भारत में फिर से जोरों शोरों से हो रही है क्योंकि मोदी जी ने इस प्रस्ताव को लागू करने की मंजूरी देदी है। अब इस प्रस्ताव ’वन नेशन वन इलेक्शन’ से दूसरे दलों की पार्टियों को हो सकता है नुकसान। आइए जानते हैं बहुत ही आसान शब्दों में (क्या है वन नेशन वन इलेक्शन?) इसके लागू होने से क्या फायदा और क्या नुकसान होगा ? सरकार ने इस प्रस्ताव को लागू करने की मंजूरी देदी है जिसके तहत लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराय जाएंगे।
सरकार नवंबर या दिसंबर में इस बिल को संसद में पेश करेगी। 

क्या है वन नेशन-वन इलेक्शन ? क्यों है इस पर बवाल
क्या है वन नेशन-वन इलेक्शन ? क्यों है इस पर बवाल

 

( क्या है वन नेशन वन इलेक्शन ? क्यों है इस पर बवाल )

ऐसा नहीं है की इस प्रस्ताव को भारत में पहली बार लागू किया जा रहा है, अब से पहले यानी आज़ादी के बाद 1952 से 1967 तक इसी प्रस्ताव से इलेक्शन होते थे। वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है कि भारत में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक ही दिन कराएं जाएं और साथ ही स्थानीय निकायों के चुनाव भी एक ही दिन कराएं जाएं। यूं समझ लीजिए की भारत की सभी 543 सीटों पर एक ही दिन चुनाव होंगे। वोटर एक ही दिन में सांसद और विधायक को अपना वोट दे सकेगें।
पीएम मोदी ने कहा है कि चुनावों का सिलसिला सिर्फ तीन चार महीने के लिए होना चाहिए पूरे 5 साल राजनीति नही होनी चाहिए

( क्यों ज़रूरी है वन नेशन वन इलेक्शन )

. देश की जनता को बार बार चुनाव से मुक्ति मिलेगी।

. बार बार चुनाव कराने से करोड़ों रुपए का खर्च होता है जो कम हो सकता है, और वोटिंग प्रेस % में बड़वा होगा।

. सरकारें बार बार चुनावी मोड़ों में जाने के बजाय विकास कार्यों पर ध्यान दे सकेंगी।

. इसके अलावा ये प्रस्ताव देश में राजनीति स्थरता लाने में अहम भूमिका निभाएगा ।

. इसका सबसे बड़ा फायदा ये भी होगा की सरकारी खज़ाने पर बोझ कम होगा जिससे आर्थिक विकास में तेज़ी आएगी

( क्यों वन नेशन वन इलेक्शन प्रस्ताव से कुछ राजनितिक दलों में नहीं बन पा रही एक राय )

आपको बताते चलें कि वन नेशन वन इलेक्शन के लागू होने को लेकर कई राजनीतिक दल इस प्रस्ताव पर अपने अलग अलग विचार दे रहें हैं, इनकी इस प्रस्ताव पर एक राय नहीं बन पा रही है। इनका मानना है कि ऐसे चुनाव से राष्ट्रीय दलों को तो फायदा होगा लेकिन क्षेत्रीय दलों को नुकसान होगा और इनका ये भी मानना है कि अगर वन नेशन वन इलेक्शन की व्यवस्था की गई तो राष्ट्रीय मुद्दों के साथ राज्य स्तर के मुद्दे भी दब जाएंगे.
खासकर क्षेत्रीय दल इस तरह के चुनाव के लिए तैयार नहीं है।

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क्या हैं ? ( वन नेशन वन इलेक्शन के फायदे )

आपको बता दें की इस साल लोकसभा चुनाव में एक अंदाजे के मुताबिक करीब 1.35 लाख करोड़ का खर्चा हुआ है अगर इसमें राज्यसभा, विधानसभा और स्थानीय चुनाव का खर्चा भी जोड़ा जाए तो अंदाज़ा लगाएं की ये खर्चा कितना होगा। ऐसे में ’वन नेशन वन इलेक्शन’ प्रस्ताव के लागू होने से करोड़ों रुपए को बचाया जा सकता है।

. देश में हर 6 महीने के बाद चुनाव होने से मशीनरी और सुरक्षा बलों पर दबाव पड़ता है, अगर एक साथ चुनाव कराएं जाएं तो संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है।

. वन नेशन वन इलेक्शन के लागू होने से एक साथ चुनाव होंगे जिससे वोटर एक ही समय में कई वोट डाल सकेगा इससे ज़ाहिर है की मतदाता में वृद्धि होगी।

क्या हैं ? ( वन नेशन वन इलेक्शन के नुकसान )

सबसे बड़ी परेशानी है कि संविधान और कानून को बदलना अगर वन नेशन वन इलेक्शन प्रस्ताव लागू होता है तो संविधान में संशोधन करना होगा क्योंकि लोकसभा और विधानसभाओं का कार्यकाल 5 साल का होता है लेकिन इन्हें इन 5 सालों में कभी भी हटाया जा सकता है (संविधान के मुताबिक) अगर ऐसा हुआ तो फिर चुनाव होंगे मगर वन नेशन वन इलेक्शन सिर्फ एक ही बार चुनाव की इजाज़त देता है

. हमारे देश में EVM और VVPET से चुनाव होते हैं जिनकी संख्या निश्चित है अगर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होते हैं तो इनकी संख्या कम पड़ेगी जिससे सरकार काफी परेशानी का सामना करना पड़ेगा ।

इन देशों में (वन नेशन वन इलेक्शन) व्यवस्था लागू है

. दक्षिण अफ्रीका

. स्वीडन

. बेल्जियम

. जर्मनी

. फिलिपिंस

 

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